आठवां दिन सफर-ए-शहादत साका सरहिंद (1704 ई) शहीदी छोटे साहिबजादे
सरहिंद के नवाब वाजिद खान ने छोटे साहिबजादों को नींव में चिनवाकर शहीद कर दिया। ठंडे बुर्ज में इस घोर अत्याचार के बीच सिक्खी न बेदाग रखने के अपने कर्तव्य को निभाते हुए माता जी सचखंड चली गईं। आजकल गुरुद्वारा फतेहगढ़ साहिब सुभाईमान है। दीवान टोडर मल्ल जी ने सोने की मुहरें विछाकर दाह संस्कार के लिए जमीन खरीदी और बाबा मोती राम मेहरा जी ने दाह संस्कार के लिए चंदन की लकड़ी की व्यवस्था की। दीवान टोडर मल्ल जी और बाबा मोती राम मेहरा जी ने तीनों पवित्र शरीरों के बिबान को कंधा दिया। जहां छोटे साहिबजादों और माता जी का अंतिम संस्कार किया गया था, वहां गुरुद्वारा ज्योति स्वरूप सुशोभित है।
बाबा मोती राम मेहरा जी का महान बलिदान धन मोती जिन पुन्न कमाया। गुर लालां ताईं दुद पिलाया। बाबाजी ने धन माता गुजर कौर जी और साहिबजादों को ठंडे बुर्ज में दूध पिलाने की सेवा निभाई और यह शिकायत गंगू ब्राह्मण के भाई पम्मा ने की थी जो बाबाजी के साथ रसोइया का काम करता था, ने सरहिंद के नवाब वाजिद खान ने बाबा जी के सात वर्षीय पुत्र नारायण, 70 वर्षीय बूढ़ी मां लाधो और सुपत्नी भोली जी को कोहलू में पीस कर शहीद कर दिया। चमकौर के किले में बाबा जी के पिता हरा सिंह जी ने शहादत का जाम पिया।
12 पोह ( साका 1704 ) सरहिंद की कचहरी में दूसरी पेशी पर मौत का फतवा
आज दूसरी बार धन धन बाबा जोरावर सिंह जी और धन धन बाबा फतेह सिंह जी सरहिंद के नवाब के दरबार में पेश हुए। सरहिंद के नवाब वाजिद खान, सुच्चा नंद दीवान ने कई प्रयास किए लेकिन छोटे साहिबजादों के सिक्खी – सिदक को कोई झुका नहीं सका। उन्होंने चाल चलकर कचहरी का मुख्य दरवाजा बंद कर दिया और छोटा दरवाजा खोल दिया ताकि जब साहिबजादे दाखिल हों तो सिर झुकाकर अंदर आएं। लेकिन साहिबजादों ने पहले अपना पैर (पावन चरण) अंदर डाला और अंदर घुसते ही जोर से फतेह बुलाई। कचहरी में सन्नाटा छा गया | नवाब और अहिलकार हक्के-बक्के रह गए। जब किसी का कोई वश ना चला तो, काजी की सहमति से फतवा सुनाया गया- “इन्हें जिन्दा नहों में चिनवा दिया जाए ।” सरहिन्द की धरती पर इतना कहर होने लगा, मानो अम्बर भी रो पड़ा और धरती भी काँपने लगी, इतना बड़ा कहर मेरे ऊपर होने लगा, लेकिन गुरु के लाल साहिबजादे निडरता से सिक्ख सिद्धक निभा गए ।
आज धन धन बाबा जोरावर सिंह जी और धन धन बाबा फतेह सिंह जी सरहिंद के नवाब के दरबार में उपस्थित हुए। पहले उसने अपने पवित्र पैर अंदर रखे और फिर दरबार में प्रवेश करते ही गुरु जी की फतेह बुलाई। बहुत धमकियाँ दीं, बहुत प्रलोभन दिए, पर गुरु के ये प्यारे लाल हमारे लिए एक मिसाल छोड़ गए, सिक्ख सिद्दक में परिपक्व रहकर, दुनिया की सारी सुख-सुविधाएँ छोड़ते हुए । साहिबजादों ने सिक्खी सिद्दक को दुनिया का सबसे बड़ी सौगात दर्शायाऔर उसमें परिपक्वता का सबसे बड़ा तोहफा। मालेरकोटले के नवाब ने हाँ का नाहरा देते हुए अपना नाम सिखों के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज किया। इन ऐतिहासिक पलों में दीवान सुच्चा नंद का नाम हमेशा काले अक्षरों में लिखा जाएगा। धन धन माता गुजर कौर जी ने अपने छोटे साहिबज़ादों को गले लगाकर उन्हें अपनी सुहावनी गोदी का आनंद देकर गुणवंती दादी का वास्तविक कर्तव्य निभाया। आइये माता जी और साहिबजादा के पूर्णों पर चलकर अपने बच्चों को ये शहादतें सुनायें और केशों की बेअदबी को छोड़कर फालतू फैशनों को छोड़ कर गुरु के शिष्य बनें।
सफर-ए-शहादत का पांचवां दिन- 10 पोह बीबी हरशरण कौर जी की लसानी कुर्बानी और शहादत
गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज द्वारा पंज सिंहों के आदेश से श्री चमकौर साहिब का किला छोड़ने के बाद, जब मुगलों को पता चला कि गुरु साहिब ने श्री चमकौर साहिब का किला छोड़ दिया है, तो उन्होंने किले को घेर लिया। आसपास के गांवों में गुरु साहिब की तलाश करने का आदेश था। गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज के प्यार में सलग्न 16 साल की एक बेहद प्यारी बेटी बीबी हरशरण कौर जी जब कबर सुनी तो उन्होंने अपनी मां से अनुमति लेकर श्री चमकौर साहिब के पवित्र शहीदों की अंत्येष्टि (अंतिम संस्कार) सेवा करने का फैसला किया। आधी रात में यह बालिका श्री चमकौर साहिब के किले में पहुंची। किले पर भारी घेरा डाला गया था लेकिन इस लड़की बीबी हरशरण कौर जी ने बड़े साहस के साथ गुरु साहिब की शरण लेकर अपने प्यारे शहीद भाइयों के पावन शरीरों को खोजा। इस तरह ढूढ़ने में उन्हें किस प्रकार सहायता मिली? 5 ककारों से जिन बाहों में गुरु साहिब के आशीर्वाद वाले कड़े, जिनके पवित्र शरीरों में श्री साहिब, कशहरे, पवित्र केशों में गुरु साहिब के आशीर्वाद वाले कंघे थे, उन शवों को खोज कर एक जगह इकट्ठा किया। दो महान साहिबजादों और बाकी सिंहों के पवित्र शरीरों के लिए एक चिता तैयार की गई और सभी शवों को एक साथ जला दिया गया। मुखाग्नि देकर सोहिला साहिब के पाठ किया। चिता को देखकर शीघ्र ही मुगल सेना ने उस ओर आक्रमण कर दिया और इस बालिका ने बहादुरी से मुगल सेना का मुकाबला किया और अंत में घायल होकर गिर पड़ी। मुगल सेना ने जल्दी से इस घायल लड़की को चिता में फेंक दिया और उसे जिंदा जला दिया। अगले दिन, फुलकिया कबीले के भाई राम और भाई त्रिलोक ने शेष शवों का अंतिम संस्कार किया। बीबी हरशरण कौर जी का बलिदान और शहादत शेष विश्व के लिए अमर रहेगी।
आज रात धन्य माता गुजर कौर जी, साहिबजादा जोरावर सिंह जी, साहिबजादा फतेह सिंह जी सरहिंद के नवाब वाजिद खान के आदेश से ठंडे बुर्ज में गुजारी। ठंडा बुर्ज एक ऐसी जगह है जहां उस समय सरहिंद के नवाब गर्मी के दिनों में गर्मी से बचने के लिए प्रयोग करता था। इस ठंडे बुर्ज के तल पर एक नदी बहती थी। पोह का महीना, कड़कड़ाती ठंड और नदी के बीच से बहती हवा, उस वक्त ठंड का क्या हाल होगा आप अंदाजा लगा सकते हैं, लेकिन मां और साहिबजादों का बुलंद हौसला, न तो सरहिंद के नवाब की धमकियाँ और न ही यह भयान -ठंड के आगे झुक सका । गुरु के लाड़ले बाबा मोती राम मेहरा जी ने अपनी जान की परवाह न करते हुए माता जी और साहिबजादेह को दूध पिलाने की बड़ी सेवा पहरेदारों को लालच देकर बड़ी मुश्किल से की। बदले में बाबा मोती राम मेहरा जी के पूरे परिवार को कोहलू में पीस दिया गया, लेकिन उस गुरु के प्यारे ने गुरु के चरणों में अपना बलिदान कर दिया।